दुनिया के इतिहास में किसी भी राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम में विरले ही ऐसा उदाहरण देखने को मिलता है, जिसमें एक तरफ राजनीतिक सहभागिता के तौर पर राष्ट्रीय आंदोलन को दिशा दिखाई, वहीं दूसरी ओर स्वयं सैनिक की पोशाक धारण कर संगठित सेना का गठन किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उस स्तर का सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वे वाकई हकदार थे।
आजाद हिन्द फौज की स्थापना
भारतीय समाज जिस वक्त अंग्रेजों की गुलामी से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब आजाद हिंद फौज की स्थापना ने राष्ट्र को अंग्रेजो के चंगुल से निकालने में बहुमूल्य योगदान दिया। पंजाब के जनरल मोहन सिंह ने 15 दिसंबर 1941 को आजाद हिंद फौज की स्थापना की और दो वर्ष बाद 21 अक्तूबर 1943 को जरनल मोहन सिंह ने इस फौज का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया था। शुरुवात में इस सेना में लगभग 16,000 से अधिक सैनिको की भर्ती हुई, लेकिन बाद में तेजी से यह आंकड़ा बढ़कर 80,000 के पार पहुंच गया।
देश के लिए सर्वस्व अर्पण
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा को बीच में ही छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कूद गए। नेताजी ने राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती देने के लिए देश के बाहर जाकर स्वतंत्रता के आंदोलन को मजबूती दी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व राष्ट्र के लिए अर्पित कर दिया। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक संबंधो को लेकर कई कयास लगाए जाते है, लेकिन नेताजी व्यक्तिगत तौर पर सदैव उनका सम्मान करते थे।
पराक्रम दिवस से गणतंत्र दिवस का उत्सव शुरू
रविवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 124वीं जयंती है। भारतीय लोकतंत्र सुभाष चंद्र बोस के जन्म दिवस को ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर मनाता है। सच्चे अर्थो में 23 जनवरी से भारतीय गणतंत्र दिवस उत्सव का शुभारंभ होता है। प्रत्येक भारतीय के लिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदर्श व्यक्तित्व है। प्रत्येक राष्ट्रवादी को नेताजी के जीवन संघर्षो से प्रेरणा मिलती है। एक प्रतिभाशाली युवा जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की उच्च प्रशासनिक सेवा में शामिल होकर बेहतर जीवन जी सकता था, उस महापुरुष ने सब कुछ त्याग कर राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए सर्वस्व अर्पण कर दिया।