मोदी सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए आठ सदस्यीय समिति का गठन कर सदस्यों के नामों की भी घोषणा कर दी है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में गठित समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, पूर्व कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे और संजय कोठारी को सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है।
Govt of India constitutes 8-member committee to examine ‘One nation, One election’.
Former President Ram Nath Kovind appointed as Chairman of the committee. Union Home Minister Amit Shah, Congress MP Adhir Ranjan Chowdhury, Former Rajya Sabha LoP Ghulam Nabi Azad, and others… pic.twitter.com/Sk9sptonp0
— ANI (@ANI) September 2, 2023
उल्लेखनीय है, कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई है। केंद्र सरकार ने इस दिशा में तैयारी तेज करते हुए संसद का विशेष सत्र भी बुला लिया है। यह सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा और सत्र में लगातार पांच बैठकें आयोजित की जाएँगी। इसी बीच इस सत्र को लेकर अनुमान लगाया जा रहा, कि संसद के विशेष सत्र के दौरान मोदी सरकार ‘एक देश-एक चुनाव’ बिल को सदन के पटल पर रख सकती है, यदि ऐसा हुआ तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा।
गौरतलब है, कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी भी कह चुके है, कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी। ‘एक देश- एक चुनाव’ के समर्थन के पीछे एक तर्क ये भी दिया जा रहा है, कि भारत जैसे बड़े देश में प्रत्येक वर्ष कहीं न कहीं चुनाव होते रहते है।
इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का उपयोग किया जाता है, लेकिन यह ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल लागू होने से बार-बार होने वाले चुनावों की झंझट से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
बता दें, स्वतंत्रता मिलने के बाद चार बार भारत में ‘एक देश-एक चुनाव’ की व्यवस्था लागू थी और एक साथ लोकसभा व विधानसभा के चुनाव होते थे। देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए है। इस व्यवस्था के अंतर्गत चार बार चुनाव हुए, जिसमें राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ होते थे। इसके बाद 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे ये क्रम टूट गया।