भारतीय गणतंत्र का चौथा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार प्राप्त करने जब नंगे पैर एक सामान्य सी कमीज और धोती पहने कर्नाटक राज्य में संतरे बेचने वाले हरेकला हजब्बा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने पहुँचे, तो अचानक सभी की निगाहें मंच की ओर मुड़ गयी। रोजाना महज 150 रुपए की कमाई करने वाले 68 वर्षीय फल विक्रेता ने खुद की बचत से गाँव में एक प्राइमरी स्कूल का निर्माण करवाया है। सोमवार (8 नवंबर, 2021) को उनके इस समर्पण के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Harekala Hajabba Ji, a fruit-vendor from Karnataka's Mangaluru, who built a school in his village from his earnings, was conferred with the Padma Shri award today. pic.twitter.com/stxhaik5gI
— Anshul Saxena (@AskAnshul) November 8, 2021
Harekala Hajabba Ji, a fruit-vendor from Karnataka's Mangaluru, who built a school in his village from his earnings, was conferred with the Padma Shri award today. pic.twitter.com/stxhaik5gI
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उल्लेखनीय है, कि पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हरेकला हजब्बा द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए इस अहम योगदान की प्रेरणा वर्षो पहले एक विदेशी पर्यटक द्वारा उनसे अंग्रेजी भाषा में संतरे के दाम पूछने पर मिली। दरअसल विदेशी पर्यटक द्वारा संतरे का दाम पूछने पर वह कोई उत्तर नहीं दे पाए थे, क्योंकि फल विक्रेता हरेकला हजब्बा को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं था। इस मामूली बात ने हरेकला हजब्बा को इतना व्यथित किया, कि उन्होंने यह निर्णय कर लिया, कि वे गांव में एक प्राथमिक विद्यालय का निर्माण करवाएँगे, वह भी अपने कमाए रुपयों से।
कर्नाटक राज्य के मंगलोर शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरेकला गाँव में फल विक्रेता का कार्य करने वाले हरेकला हजब्बा का कहना है, कि गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते उन्हें शिक्षा से वंचित रहना पड़ा था। उन्होंने कहा, कि उन्हें तो स्कूल में पढ़ने – लिखने का मौका नहीं मिला, लेकिन वे यह नहीं चाहते थे, कि गाँव के भावी पीढ़ी के छोटे बच्चे भी शिक्षा से वंचित रह जाएँ।
पद्मश्री हरेकला हजब्बा के अनुसार, वर्तमान में उनके द्वारा निर्मित स्कूल में दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है, और स्कूल में लगभग 175 छात्र अध्यनरत है। हरेकला हजब्बा ने स्कूल निर्माण का कार्य वर्ष 1995 से प्रारंभ कर दिया था। साल 2000 में उन्होंने अपनी एक एकड़ भूमि पर अपनी जीवन भर की कमाई का उपयोग कर स्कूल का निर्माण करवाया।
हरेकला हजब्बा को उनके इलाके के लोग प्रेम से ‘अक्षर संत’ कह कर बुलाते है। वर्तमान में उनकी कामना है, कि अब उनके गाँव में एक प्री-यूनिवर्सिटी का भी निर्माण हो। हरेकला हजब्बा द्वारा निर्मित स्कूल को स्थानीय निवासी ‘हजब्बा स्कूल’ के नाम से पुकारते है। इसके साथ ही उनके शिक्षा के क्षेत्र में किये गए भगीरथ प्रयास को मंगलोर यूनिवर्सिटी में पढ़ाया भी जाता है।
पद्मश्री हरेकला हजब्बा के शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान को देखते हुए अब तक तकरीबन पांच सौ संस्थाओं द्वारा सम्मान प्राप्त हो चुका है। हरेकला हजब्बा का कहना है, कि अब तक प्राप्त पुरस्कारों के साथ-साथ वे पद्मश्री सम्मान को भी सहेज कर रखेंगे। दरअसल वर्ष 2020 की जनवरी में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा हरेकला हजब्बा को पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की थी। लेकिन, कोरोना आपदाकाल के चलते कार्यक्रम स्थगित होने के कारण 2020 और 2021 के पद्म सम्मान का कार्यक्रम का आयोजन वर्तमान में किया गया है।