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(सांकेतिक चित्र)
घर में पलने वाली पालतू बिल्ली की खरोंच को मामूली समझना बच्चे की जान पर भारी पड़ गया। बीते गुरुवार केजीएमयू लखनऊ में जांच में रैबीज की पुष्टि के बाद इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सावधानी के तौर पर मृतक बच्चे के परिजनों को एआरवी वैक्सीन लगाई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम सेल और राष्ट्रीय रैबीज नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल डॉ. मीसम अब्बास के अनुसार, बीते गुरुवार की दोपहर तीन बजे बरेली से रेफर होने के बाद हाइड्रोफोबिया और एयरोफोबिया से ग्रसित बच्चे को लेकर परिजन केजीएमयू लखनऊ रवाना हुआ।
परिजनों ने डॉक्टरों को बताया, कि सीतापुर पहुंचने के दौरान उसे उल्टियां होने लगी और चीखने लगा। बच्चा पानी को देखकर डरने लगता। इसके साथ ही बच्चे ने दो दिन से कुछ खाया-पिया भी नहीं था, जिससे कमजोरी भी थी। केजीएमयू पहुंचने पर चिकित्सकीय जांच में रैबीज की पुष्टि हुई, जिसके बाद बच्चे को क्वारंटीन किया गया जहां रात में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
शुक्रवार सुबह को बदायूं स्वास्थ्य विभाग को इस संबंध में सूचना दी गई। स्वास्थ्य विभाग ने टीम भेजकर बच्चे के तीन परिजनों को एआरवी वैक्सीन लगवाई। साथ ही स्वास्थ्य बिगड़ने पर इसकी तत्काल सूचना नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र को दिए जाने की अपील की गई। ताकि तुरंत इलाज की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
मीडिया को डॉ. अब्बास ने बताया, घर में पलने वाले पालतू जानवर परिवार के साथ इस कदर घुल मिल जाते है, कि उन्हें महसूस ही नहीं होता, कि ये जानलेवा साबित हो सकता है। दरअसल, जागरूक लोग पालतू पशु का नियमित टीकाकरण कराते हैं, जबकि अधिकतर लोग वैक्सीन के खर्च की वजह से वैक्सीन नहीं लगवाते। जो बेहद खतरनाक है।
आईवीआरआई रेफरल पॉलीक्लीनिक के प्रभारी प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमरपाल के ने बताया, कि यदि पालतू पशु को अगर कोई संक्रमित पशु काट ले या फिर उसकी लार के संपर्क में आए, तो उनमें भी रैबीज का वायरस प्रवेश कर जाता है। इसके अलावा संक्रमित जानवर जहां बैठते हैं, वहां अगर घाव के अंश गिर जाएं तो उनके संपर्क में आने से भी रैबीज हो सकता है, लेकिन यदि पशु का टीकाकराण पहले हुआ है, तो वायरस खत्म हो जाता है।