भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है। इस कथन का तात्पर्य गांवों के विकास को प्रमुखता प्रदान करते हुए उससे राष्ट्र की उन्नति को निर्धारित करने से था। उत्तराखंड राज्य के गाँवो से लोग रोजगार की कमी के चलते महानगरों का रुख रहे है। इसी क्रम में पलायन का दंश झेल रहे है, उत्तराखंड में 24 और गांव निर्जन हो गए है, हालाँकि रोजगार और स्वरोजगार की उपलब्धता के बूते राज्य के जिलों और राज्य से बाहर लोगो का पलायन घटा है।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट्स के अनुसार, राज्य गठन के बाद रोजगार के लिए पहाड़ी जनपदों से बेहद तेजी से पलायन हुआ है। इसके साथ ही पलायन का दंश झेल रहे गाँवो की संख्या बढ़कर अब 1726 तक पहुंच गई है। हालांकि राहत की बात है, कि पलायन की दर घटी है, और पलायन करने वालों की संख्या में थोड़ी कमी दर्ज की गई है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग ने पलायन की दूसरी अंतरिम रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है, कि राज्य के गाँवो में 45.7 फीसदी नागरिक आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है, हालांकि इसमें कुछ कमी दर्ज की गई है। बता दें, पलायन निवारण आयोग ने उत्तराखंड के सभी गाँवो का सर्वेक्षण कर 2018 मई में पलायन की स्थिति पर प्रदेश सरकार को सौंपी थी।
पलायन निवारण आयोग द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार, पलायन का दंश झेल रहे गाँवो की कुल संख्या 1726 तक पहुंच गई है। हालांकि निर्जन हो रहे गाँवो की दर में कमी दर्ज की गई है। वहीं अस्थायी व स्थायी पलायन करने वालों की संख्या में थोड़ी कमी आई है।
पलायन निवारण आयोग की 2018 की रिपोर्ट में यह जानकारियां सामने आई थी, कि राज्य गठन से लेकर 2018 तक की अवधि में 1702 गांव पलायन के चलते निर्जन हो चुके थे। इस लिहाज से प्रत्येक वर्ष औसतन सौ गांव वीरान हो रहे थे। वहीं मई 2018 से सितंबर 2022 तक के कालखंड में 24 गांव वीरान हुए। अब वर्तमान धामी सरकार के समक्ष इन आंकड़ों को शून्य पर लाने की कड़ी चुनौती है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, कि पलायन थामने को लेकर सरकार गंभीर है। सरकार कुछ योजनाएं लेकर आई है और कुछ पर काम चल रहा है। यह सही है, कि पलायन थामने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है, लेकिन सरकार अपने प्रयासों में निरंतर जुटी है। आने वाले दिनों में इसके आशानुरूप परिणाम आएंगे।
पलायन निवारण आयोग की पहली रिपोर्ट में यह सामने आया था, कि सीमांत इलाकों के गांव भी वीरान हो रहे है। उस वक्त इन गाँवो की संख्या 14 थी, अब दूसरी रिपोर्ट में उत्तराखंड में 24 और गांव वीरान हो गए है। इनमें 12 गांव सीमांत चमोली, अल्मोड़ा, चम्पावत और पिथौरागढ़ जनपदों के है। वहीं रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरकाशी, रुद्रपयाग, देहरादून, हरिद्वार, बागेश्वर और उधमसिंहनगर जिलों में वर्ष 2018 के बाद कोई गांव वीरान नहीं हुआ है।
उल्लेखनीय है, कि उत्तराखंड के गाँवो में साल 2018 के बाद स्वरोजगार को लेकर उत्साह बढ़ा है। पर्वतीय ग्रामीणों इलाकों में दुकान, होटल, रेस्टोरेंट, होम स्टे, पोल्ट्री फॉर्म, मशरूम समेत कई अन्य कारोबार में हाथ आजमा रहे है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 के बाद उत्तराखंड गाँवो से पलायन के गंतव्य में बदलाव आया है। रोजगार, स्वरोजगार की उपलब्धता के चलते नजदीकी कस्बो व जिला मुख्यालयों में पलायन बढ़ा है।