मुंबई सिनेमा जगत के फ़िल्मी खानदान के वंशज अर्जुन कपूर की फ़िल्म “सरदार का ग्रैंडसन” OTT प्लेटफॉर्म नेटफ़िल्क्स पर रिलीज हो गयी है। इस फिल्म में उनके साथ रकुल प्रीत सिंह और नीना गुप्ता मुख्य भूमिका में है। पिछले कुछ समय से लगातार फ्लॉप फिल्में देने के बाद एक बार दोबारा अर्जुन कपूर अपनी फिल्म दर्शको के समाने लाये है। अब यह देखना है, कि क्या यह फ़िल्म दर्शकों को पसंद आएगी या यह अर्जुन कपूर की एक और फ्लॉप फिल्म साबित होने वाली है।
फिल्म ‘सरदार का ग्रैंडसन’ की कहानी के अनुसार सरदार (नीना गुप्ता) को अधिक आयु में होने वाली बीमारी के कारण उन्हें डॉक्टरों ने जबाब दे दिया है, कि अब वे अब इस दुनिया में बस चंद दिनों की मेहमान है। पंजाब के अमृतसर में रहने वाली सरदार अमेरिका में बिजनेस करने वाले अपने पोते को अपनी आखिरी खाव्हिश बताती है, कि वो मरने से पहले पकिस्तान लाहौर में अपने उस घर को देखना चाहती है, जो उसके पति गुरशेर सिंह (जॉन अब्राहम) ने भारत – पाक बंटवारे से पहले बनवाया था।
फिल्म में दिखाया गया है, कि भारत को आजादी मिलने के वक्त पकिस्तान में हुए मजहबी दंगे में सरदार के पति गुरशेर सिंह का कत्ल हो जाता है। इस कारण सरदार को मजबूरी में जान और इज्जत बचाकर पकिस्तान से भाग कर, अपने बेटे के साथ अमृतसर आना पड़ता है। अब सरदार की जिंदगी में उसका आखिरी समय आ गया है। अब सरदार अपनी ख़राब सेहत के चलते पकिस्तान नहीं जा सकती है। परन्तु उसका पोता अमरीक (अर्जुन कपूर) पकिस्तान लाहौर की कबूतर गली से अपना विशाल इमारत वाले घर को एक ट्रॉलर पर रख कर अमृतसर तक ले आता है।
अभिनेत्री रकुल प्रीत बेहद खूबसूरत है, लेकिन अर्जुन कपूर के साथ उनकी जोड़ी बेमेल नजर आती है। अर्जुन कपूर ने अपना किरदार निभाते वक्त बेहद खराब अभिनय का परिचय दिया है। उन्हें देख कर ऐसा प्रतीत होता है, कि उन्हें अब फिल्में सिर्फ उनके कपूर सरनेम की वजह से मिलती है। फिल्म को देखते वक्त उनके शरीर का बढ़ता वजन और मोटापा आंखों को चुभता है। सरदार की भूमिका निभा रही नीना गुप्ता का अभिनय आखों को सुकून देता है, परन्तु उनका खराब मेकअप उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर देता है। फिल्म की कहानी बेहद लचर और बोरिंग ढंग से आगे बढ़ती है। इसके साथ अमितोष नागपाल के लिखे बेसिर – पैर के संवाद फिल्म देखते हुए मन में खीज उत्प्न्न करते है।
फिल्म ‘सरदार का ग्रैंडसन’ में एक बार फिर मुंबई फिल्म जगत का दहशतगर्द पकिस्तान के प्रति अपनी वफादारी सिद्ध करने का मौका मिला है। फिल्म में एक तरफ जहाँ अर्जुन कपूर और भारतीय नेता को मुर्ख और मजाकिया बताया गया है। वही दूसरी ओर पकिस्तान के नागरिको और नेताओ को गंभीर एवं सवेंदनशील दिखाया गया है। दुनिया भर के आतंकीवादियों को पनाह देने वाले पकिस्तान को इस फिल्म में मासूम और शराफत का पुतला बनाकर पेश किया गया है।
फिल्म के निर्देशक काशवी नायर के कमजोर प्रस्तुतीकरण ने निराशा किया है। तनिष्क बागची का संगीत बेअसर है। कुल मिलाकर फिल्म “सरदार का ग्रैंडसन” में ऐसा कुछ नहीं है, जो दर्शको को बांध कर रख सके। यह फिल्म शुरू में तो थोड़ी सी बोरिंग है, परन्तु धीरे धीरे ये फिल्म उबाऊ होने के साथ – साथ पकाऊ भी हो जाती है।