राधारानी के परम भक्त और वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज को भला कौन नहीं जानता है, वे आज के समय के प्रसिद्ध संत हैं। यही कारण है, कि उनके भजन और सत्संग सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रेमांनद जी महाराज की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। बुधवार सुबह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने वृंदावन में पूज्य श्री संत प्रेमानंद महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त कर अध्यात्म पर चर्चा की।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर उपलब्ध वीडियो में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत व प्रेमानंद महाराज जी के बीच आध्यात्मिक संवाद भी हुआ। संवाद के दौरान मोहन भागवत ने प्रेमानंद महाराज जी से कहा, बस आपके दर्शन करने थे, आपकी बात वीडियो में सुनी, तो लगा कि आपसे मिलना चाहिए।
संघ प्रमुख ने कहा, “चाह मिटी चिंता गई मनुवा बेपरवाह। ऐसे लोग कम देखने को मिलते है इसलिए मिलने की इच्छा हुई। आध्यात्मिक चर्चा के दौरान प्रेमानंद महाराज जी ने कहा, कि भगवान ने जन्म केवल सेवा के लिए दिया है। व्यवहारिकी और आध्यात्मिक सेवा के लिए दिया है। ये दोनों अनिवार्य है।
प्रेमानंद महाराज जी ने कहा, हमारा तिरंगा, हमारा राष्ट्र, हमारा भगवान है। आप तप के द्वारा, भजन के द्वारा लाखों की बुद्धि को शुद्ध कर सकते हैं। एक भजन लाखों का उद्धार कर सकता है। आप भजन करो, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करो और राष्ट्र सेवा करो, राष्ट्र की सेवा के लिए प्राण समर्पित करो।
मोहन भागवत ने कहा, कि नोएडा में मुझे भारत के विकास पर भाषण देना था। आप लोगों से जो सुनते हैं, उसी पर भाषण दिया। हम सुधार के लिए आखिरी तक प्रयास करते रहेंगे, लेकिन क्या होगा, ऐसी चिंता मन में आती है। संघ प्रमुख के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रेमानंद महाराज जी ने कहा, कि क्या हमें श्रीकृष्ण पर भरोसा नहीं है। भरोसा दृढ़ है, तो मंगलमय होगा। एक भजनानंदी लाखों का उद्धार कर सकता है। आचरण, संकल्प और वाणी से हमें राष्ट्र सेवा करनी है।
आध्यात्मिक चर्चा में प्रेमानंद महाराज जी ने कहा, कि हम अपने भारतवासियों को परमसुखी करना चाहते है, तो केवल वस्तु और व्यवस्था से नहीं कर सकते। उनका बौद्धिक स्तर सुधरना चाहिए। आज समाज का बौद्धिक स्तर गिरता चला जा रहा है। ये चिंता का विषय है। हम उन्हें सुविधाएं दे देंगे, विभिन्न प्रकार की भोग सामग्री दे देंगे, लेकिन उनके हृदय की जो मलीनता है, जो हिंसात्मक वृत्ति है, ये जब तक ठीक नहीं होगी, तब तक कुछ ठीक नहीं होगा।
उन्होंने कहा, कि हमारी नई पीढ़ी से हमारे राष्ट्र की रक्षा करने वाले प्रकट होते है। हमारी शिक्षा केवल आधुनिकता का स्वरूप लेती जा रही है। व्याभिचार, व्यसन और हिंसा की प्रवृत्ति नई पीढ़ी में देख हृदय में काफी असंतोष होता है। अविनाशी जीव कभी भोग विलास में तृप्त हो ही नहीं सकता। अब जो मानसिकता बन रही, धर्म और देश के लिए लाभदायक नहीं है।
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, धर्म का क्या स्वरूप है, जीवन का लक्ष्य क्या है? हमें जितना राम और श्रीकृष्ण प्रिय हैं, उतना ही हमारा देश प्रिय है। हमारे लिए देश का जन जन प्रिय है, लेकिन जो भावनाएं बन रही है, वो हमारे देश और धर्म के लिए ठीक नहीं है। हिंसा का बढ़ता स्वरूप बहुत ही विपत्तिजनक है। अगर ये बढ़ता रहा, तो हम सुख सुविधाएं देने के बाद भी देश की जनता को सुखी नहीं रख पाएंगे, क्योंकि सुख का स्वरूप विचार से होता है। उन्होंने कहा, कि हमारा उद्देश्य है, कि हमारे देशवासियों का विचार शुद्ध होना चाहिए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रेमानंद महाराज जी के दादा जी सन्यासी थे। पूर्वजों का आशीर्वाद और घर पर संतों और महात्माओं का आना जाना लगा रहता था। 13 वर्ष की अल्प आयु में सांसारिक जीवन त्याग कर संन्यासी बनने के लिए प्रेमानंद महाराज जी भगवान शिव की नगरी काशी आ गए। प्रेमानंद महाराज जी के दर्शन करने के लिए देश-विदेश के भक्त वृंदावन धाम आते है, और साथ ही करोड़ो भक्त सोशल मीडिया पर सत्संग का श्रवण करते है। उन्होंने अपना जीवन राधारानी की भक्ति सेवा के लिए पूर्णतः समर्पित कर दिया है।