देवभूमि उत्तराखंड में एक लंबे वक्त से सशक्त भू-कानून और मूल निवास 1950 को लागू किये जाने की मांग की जा रही है। उत्तराखंड में भी हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सख्त भूमि कानून बनाने की मांग को लेकर राज्य में आंदोलन गतिमान है। इसी क्रम में मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति द्वारा कर्णप्रयाग और ग्वालदम में आयोजित बैठक में फैसला लिया गया, कि 1 सितंबर को गैरसैण में मूल निवास स्वाभिमान महारैली आयोजित की जाएगी।
भू-कानून समन्वय समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, कि प्रदेश में बाहरी लोगों की संख्या 40 लाख से अधिक हो गई है, जो नौकरी, रोजगार, जल, जंगल और जमीन पर कब्जा कर रहे है। 31 अगस्त को कर्णप्रयाग में मशाल जुलूस और लाउडस्पीकर के माध्यम से अधिक से अधिक स्थानीय नागरिकों को रैली में शामिल होने की अपील की जाएगी।
संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा, कि गैरसैंण में प्रस्तावित मूल निवास स्वाभिमान महारैली ऐतिहासिक होगी, जिसमें स्थायी राजधानी गैरसैंण के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जाएगा। संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष नारायण सिंह बिष्ट ने कहा, कि अपनी जमीन और मूल निवासियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए आंदोलन अनिवार्य है। उन्होंने कहा, कि गैरसैंण पहाड़ की आत्मा है और यहां से शुरू होने वाला मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन पूरे राज्य में फैलाया जाएगा।
गौरतलब है, कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों और विविध रंगों से सरोबार देवभूमि उत्तराखंड राज्य में बड़े पैमाने पर भूमि की अनियोजित खरीद-फरोख्त ने जनसांख्यिकीय में तेजी से बदलाव ने मूल निवासियों के लिए नई समस्या को जन्म दे दिया है। पांचजन्य की रिपोर्ट के अनुसार, मस्जिदों और मदरसों की संख्या में तेजी से वृद्धि और वहां होने वाली गतिविधियां प्रशासन के लिए चुनौतियों खड़ी कर रही है।
जनसंख्या असंतुलन के मुहाने पर उत्तराखंड।
24 साल में 16 प्रतिशत हुई उत्तराखंड की मुस्लिम आबादी।
उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने भी इस समस्या को गंभीरता से समझ लिया है।
खबर है कि डेमो ग्राफी चेंज को रोकने के लिए राज्य सरकार भविष्य में कुछ कड़े फैसले ले सकती है।
2000 में उत्तराखंड… pic.twitter.com/PikFelYru9
— Panchjanya (@epanchjanya) August 30, 2024
उत्तर प्रदेश, हिमाचल और हरियाणा से सटे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी का योजनाबद्ध ढंग से विस्तार हो रहा है। जहां पहले कुछ ही मुस्लिम परिवार होते थे, वहीं अब कई गांव मुस्लिम बाहुल्य हो चुके है। पांचजन्य में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, देहरादून जिले के पछुवा क्षेत्र में 28 गांव जो पहले हिंदू बाहुल्य थे, अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए है। इनमें ढालीपुर, कुंजा, ढकरानी, धर्मावाला, बैरागीवाला, तिमली और कई अन्य गांव शामिल है।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1991 में ढकरानी गांव की हिंदू आबादी 80 प्रतिशत थी, जबकि मुस्लिम आबादी महज 20 फीसदी थी। हालांकि अब 2024 में हालात बदल गए है और मुस्लिम आबादी 60 फीसदी तक वृद्धि दर्ज की गई है। इसी प्रकार लक्ष्मीपुर, शंकरपुर और रामपुर जैसे गांव जो पहले हिंदू बहुल थे अब मुस्लिम गांव बन गए है।
इसके अलावा शिमला बाईपास और आसन बैराज मार्ग के दोनों तरफ सरकारी जमीनों पर मुस्लिम आबादी ने अवैध कब्जे कर लिए हैं और जमुना, अमलावा, नौरा और कालसी जैसी नदियों के किनारे भी मुस्लिमों के अवैध कब्जे चिन्हित हुए है। साथ ही सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे करने वाले मुस्लिम लोग जो मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और बिजनौर जैसे जिलों से आए है और स्थानीय जन प्रतिनिधियों के संरक्षण में इन कब्जों को खुलेआम अंजाम दे रहे है।
पांचजन्य की रिपोर्ट के अनुसार, पछुवा क्षेत्र में हाल के वर्षों में सौ से अधिक मस्जिदें और 46 अवैध मदरसे स्थापित किए गए हैं। क्षेत्र में कट्टरपंथी मुस्लिम अपने प्रभाव को दिनोंदिन बढ़ा रहे है। वहीं पछुवा देहरादून अब जिहादी गतिविधियों का केंद्र बन चुका है। वर्तमान में राज्य में सश्क्त भू-कानून के साथ ही मूलनिवास को लेकर आंदोलन गतिमान है। अब सवाल ये है, कि क्या धामी सरकार प्रदेश में सशक्त भू कानून और मूल निवास 1950 लागू करने के लिए गंभीर है?