उत्तराखंड में सशक्त भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण के लिए गठित कमेटी ने सोमवार (5 सितम्बर 2022) को राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा, कि उत्तराखंड में भू-कानून (Uttarakhand land law) के लिए गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। गहन अध्ययन के बाद जनभावनाओं के अनुरूप हिमालयी राज्य में नया भू कानून लागू किया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय में कमेटी के अध्यक्ष सुभाष कुमार, कमेटी के सदस्य अजेंद्र अजय, अरुण ढौंडियाल व डी.एस.गर्व्याल और दीपेंद्र कुमार चौधरी द्वारा लगभग 80 पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री धामी को सौंपी। उल्लेखनीय है, कि सीएम धामी ने पिछले वर्ष जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री का दायित्व मिलने के बाद अगस्त माह में सशक्त भू-कानून के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया था।
आज मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय में भू-कानून कमेटी के सदस्यों ने भेंट करते हुए इससे संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की। भू-कानून से संबंधित हम सभी पक्षों की राय लेते हुए प्रदेश के विकास व प्रदेशवासियों के कल्याण हेतु निर्णय लेंगे। pic.twitter.com/Dqj3O57n1h
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) September 5, 2022
कमेटी ने पर्वतीय राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार – विमर्श के बाद लगभग 80 पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में ऐसे बिंदुओं को शामिल किया है, जिससे प्रदेश में विकास के लिए निवेश और रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी हो। इसके अलावा कमेटी ने अपनों रिपोर्ट में भूमि का अनावश्यक इस्तेमाल रोकने की अनुशंसा भी की है। कमेटी ने वर्तमान समय में राज्य में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) यथा संशोधित और यथा प्रवृत्त में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह कतिपय प्रावधानों की संस्तुति की है।
सशक्त भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण के लिए गठित कमेटी की मुख्य संस्तुतियां
- वर्तमान में जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन ना करके रिसोर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में नागरिक भूमिहीन हो रहे है और नए रोजगार का सृजन भी नहीं हो रहा है। समिति ने संस्तुति की है, कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर से ना की जाऐं। शासन से ही अनुमति का प्रावधान हो।
- वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी द्वारा प्रदान की जा रही है। हिमांचल प्रदेश की भाँति ही ये अनुमतियाँ, शासन स्तर से न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर ही प्राप्त की जाएं।
- वर्तमान में प्रदेश सरकार पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था/फर्म/ कम्पनी/ व्यक्ति को उसके आवेदन पर दे सकती है। उपरोक्त प्रचलित व्यवस्था को खत्म करते हुए, हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता (Essentiality Certificate) के आधार पर दिया जाना उचित होगा।
- केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल / रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही (Essentiality Certificate) के आधार भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाए। अन्य प्रयोजनों हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था लाने की कमेटी संस्तुति करती है।
- वर्तमान में, गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को 10 दिन में S.D.M. धारा- 143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा। परन्तु क्रय अनुमति आदेश में 2 वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन में करने की शर्त रहती है। यदि निर्धारित अवधि में उपयोग ना करने पर या किसी अन्य उपयोग में लाने/विक्रय करने पर राज्य सरकार में भूमि निहित की जाएगी, यह भी शर्त में उल्लेखित रहता है। यदि दस दिनों में गैर कृषि प्रयोजन हेतु क्रय की गई कृषि भूमि को गैर कृषि” घोषित कर दिया जाता है, तो फिर यह धारा-167 के अंतर्गत राज्य सरकार में (उल्लंघन की स्थिति में) निहित नहीं की जा सकती है। अतः नई उपधारा जोड़ते हुए उक्त भूमि को पुनः कृषि भूमि घोषित करना होगा, तत्पश्चात उसे राज्य सरकार में निहित किया जा सकता है।
- कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है। समिति की संस्तुति है, कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग-अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेख से लिंक कर दिया जाए।
- राज्य सरकार ‘भूमिहीन’ को अधिनियम में परिभाषित करे। समिति का सुझाव है कि पर्वतीय क्षेत्र में न्यूनतम 5 नाली एवं मैदानी क्षेत्र में 0.5 एकड़ न्यूनतम भूमि मानक भूमिहीन’ की परिभाषा हेतु औचित्यपूर्ण होगा।
- भूमि जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उललंघन रोकने के लिए एक जिला / मण्डल / शासन स्तर पर एक टास्क फ़ोर्स बनाई जाए। ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके।
- सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं।
- कतिपय प्रकरणों में कुछ व्यक्तियों द्वारा एक साथ भूमि क्रय कर ली जाती है तथा भूमि के बीच में किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पड़ती है तो उसका रास्ता रोक दिया जाता है। इसके लिए (Right of Way) की व्यवस्था की जाये।
- विभिन्न प्रयोजनों हेतु जो भूमि खरीदी जायेगी उसमें समूह ‘ग’ व समूह ‘घ’ श्रेणीयो में स्थानीय लोगो को 70% रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो। उच्चतर पदों पर योग्यतानुसार वरीयता दी जाए।
- विभिन्न अधिसूचित प्रयोजनों हेतु प्रदान की गयीं अनुमतियों के सापेक्ष आवेदक इकाइयों/ संस्थाओं द्वारा कितने स्थानीय लोगों को रोजगार दिए गए, इसकी सूचना अनिवार्य रूप से शासन को उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो।
- वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है और राज्य सरकार को अपने विवेक के अनुसार इसे बढ़ाने का अधिकार दिया गया है। इसमें संशोधन कर विशेष परिस्थितयों में यह अवधि तीन वर्ष (2 + 1 = 3) से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- पारदर्शिता हेतु क्रय- विक्रय, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया Online हो। समस्त प्रक्रिया एक वेबसाइट के माध्यम से पब्लिक डोमेन में हो।
- प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल/ औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औौद्योगिक प्लाट्स/ बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आबंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए।
- प्रदेश में वर्ष बन्दोबस्त हुआ है। जनहित/ राज्य हित में भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए।
- भूमि क्रय की अनुमतियों का जनपद एवं शासन स्तर पर नियमित अंकन एवं इन अभिलेखों का रख-रखाव अनिवार्य किया जाये।
- धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय/ निर्माण किया जाता है तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए।
- राज्य में भूमि व्यवस्था को लेकर जब भी कोई नया अधिनियम/ नीति / भूमि सुधार कार्यक्रम चलायें जायें तो राज्य हितबद्ध पक्षकारों / राज्य की जनता से सुझाव अवश्य प्राप्त कर लिए जाएँ।
- नदी – नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि आदि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे /निर्माण / धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान हो। संबंधित विभागों के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई का प्रावधान हो। ऐसे अवैध कब्जों के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान चलाया जाए।