गुजरात के सूरत में नौ वर्षीय देवांशी ने संन्यास ग्रहण किया है। देवांशी हीरा कारोबारी संघवी मोहन भाई की पोती और धनेश-अमी बेन की पुत्री है। देवांशी के संन्यास लेने से पहले दीक्षा महोत्सव के अवसर पर सूरत में वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 11 ऊँट और 20 घोड़ों को शामिल किया गया था। यात्रा में हजारों की संख्या में लोग शामिल थे।
देवांशी ने जैनाचार्य कीर्तियशसूरीश्वर महाराज से दीक्षा प्राप्त की है। देवांशी के दीक्षा ग्रहण करने कार्यक्रम में करीब 35 हजार लोग शामिल हुए थे। देवांशी का दीक्षा महोत्सव शनिवार (14 जनवरी 2023) को आरंभ हुआ था और बीते बुधवार (18 जनवरी 2023) को पूर्ण हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, देवांशी की दीक्षा दान यात्रा नवम्बर 2022 में बेल्जियम में निकली गई थी।
देवांशी के पिता सूरत के एक बड़े हीरा कारोबारी है। वे डायमंड पॉलिशिंग और निर्यात संघवी एंड संस कंपनी के ओनर है। यह कंपनी हीरा का कारोबार करने वाली सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है। संघवी एंड संस 100 करोड़ का सालाना कारोबार करती है। देवांशी के पिता धनेश संघवी अपने पिता मोहन संघवी के इकलौती संतान है। देवांशी अपने परिवार की बड़ी बेटी है। उनकी छोटी बहन काव्या जो अभी 5 साल की है।
देवांशी के परिवालो के अनुसार, बचपन से ही देवांशी की रुचि धार्मिक गतिविधिओ में थी। उन्होंने आज तक कभी टीवी नहीं देखा है। इतना ही नहीं, वह इस छोटी की आयु में ही 357 दीक्षा प्राप्त कर चुकी हैं। साथ ही करीब 500 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर विहार और जैन समुदाय से जुड़े रीति-रिवाजों को आत्मसात किया है। देवांशी पांच भाषाओं की ज्ञाता भी है।
संघवी परिवार की 9 साल की देवांशी ने संयम का मार्ग अपनाया, नया नाम मिला साध्वी दीगंतप्रज्ञाश्रीजी,वेसू के बलर फार्म में राजशाही अंदाज में सजे विशाल मंडप में 30 हजार से अधिक धर्मप्रेमी शामिल हुए,ओघा मिलते ही आनंदित हो देवांशी नृत्य करने लगी, मानो पूरी सृष्टि की खुशी उसे मिल गई हो। pic.twitter.com/cSRFtNDoSD
— JAINISM_NEWS (@JainismN) January 19, 2023
देवांशी के परिजनों के अनुसार, उन्होंने सदैव ही जैन समुदाय से संबंधित कार्यो में ही रूचि दिखाई है। उन्होंने कभी भी अक्षर लिखे हुए वस्त्र भी धारण नहीं किये है। इसके साथ ही देवांशी ने धार्मिक शिक्षा में आयोजित प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया था। वे संगीत, स्केटिंग, वैदिक गणित और भरतनाट्यम नृत्य शैली में भी पारंगत है।
देवांशी को जैन समुदाय से संबंधित वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ याद है। देवांशी की माताजी अमी बेन धनेश भाई संघवी के अनुसार, उनकी बेटी जब मात्र 25 दिनों की थी, तब से उन्होंने नवकारसी का पच्चखाण लेना किया। 4 महीने के होने पश्चात उन्होंने शाम के बाद भोजन करना बंद कर दिया था।
उन्होंने बताया, कि उनके आठ माह के होने पर वह प्रत्येक दिन त्रिकाल पूजन करती थी। एक वर्ष की आयु से ही वे प्रतिदिन नवकार मंत्र का जाप कर रही है। महज दो वर्ष और 1 माह से उन्होंने धार्मिक गुरुओं से शिक्षा दीक्षा लेना आरंभ किया। नौ वर्ष की आयु में संन्यास ग्रहण करने वाली देवांशी के जीवन का सबसे बड़ा परिवर्तन तब आया, जब उन्होंने साढ़े चार साल की आयु से गुरुओं के सानिध्य में रहना शुरू किया।