दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने लाल किले पर कब्जे की मांग करने वाली एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा। दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते शुक्रवार (13 दिसंबर 2024) को मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर-II की वंशज सुल्ताना बेगम द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता महिला ने कोर्ट से वैध उत्तराधिकारी होने के नाते स्वयं को दिल्ली के लाल किले का स्वामित्व प्रदान करने की अपील की थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुल्ताना बेगम ने वर्ष 2021 के हाईकोर्ट के एकल बेंच के निर्णय को चुनौती देते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। जिसमें महिला की याचिका देरी के आधार पर खारिज कर दी गई थी। वहीं अब कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने होई कोर्ट के एकल न्यायाधीश के दिसंबर 2021 के फैसले के खिलाफ सुल्ताना बेगम की अपील को खारिज कर दिया।
रिपोर्ट्स के अनुसार, सुल्ताना बेगम ने कोर्ट में दावा किया था, कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके पूर्वजों से लाल किले को जबरन छीनकर उस पर कब्जा कर लिया गया था। उनका कहना था, कि यह किला उनके पूर्वज बहादुर शाह जफर-II से उन्हें विरासत में मिला है। बेगम ने वकील विवेक मोरे के माध्यम से दायर याचिका में यह भी तर्क दिया, कि भारत सरकार ने लाल किले पर अवैध कब्जा किया हुआ है।
याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार से माँग की थी, कि उन्हें लाल किला वापस लौटाया जाए या फिर 1857 से अब तक का मुआवजा दिया जाए। दरअसल, एकल न्यायाधीश ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवैध रूप से कब्जे में लिए गए लाल किले पर स्वामित्व की मांग करने वाली बेगम की याचिका को 20 दिसंबर, 2021 खारिज कर दिया था। पीठ ने अपने निर्णय में कहा था, कि 150 से अधिक वर्षों के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाने में अत्यधिक देरी का कोई औचित्य नहीं है।
बता दें, कि लाल कोट यानी लाल किला का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने करवाया था। वर्ष 1747 में नादिर शाह के आक्रमण के दौरान लाल किले की कला और बहुमूल्य रत्न लूट लिए गए, जिनमें प्रसिद्ध मयूर सिंहासन भी शामिल था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिशों ने किले का लगभग अस्सी फीसदी हिस्सा नष्ट कर दिया, संगमरमर की संरचनाएँ हटा दीं और सेना के लिए पत्थर की बैरकें बना ली।
वहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लाल किले का उपयोग भी सैन्य बेस के रूप में किया गया। 2003 में वाजपेयी सरकार ने इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सौंप दिया, जो अब इसके संरक्षण और देखरेख का कार्य करता है। दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय के बाद अब सुल्ताना बेगम की याचिका पर कोई कानूनी राहत मिलने की संभावना भी नजर नहीं आ रही है।