शीर्ष न्यायालय ने चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा वोटरों को आकर्षित करने के लिए सरकारी खजाने का दुरुपयोग करने पर केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में यह अपील की गई है, कि उन राजनीतिक पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द और चुनाव चिन्ह जब्त किये जाये, जो वोटरों को मुफ्त में सुविधाएँ देने का लालच देते है।
Supreme Court issues notice to the Centre and Election Commission of India seeking direction to seize election symbols and deregister political parties that promised to distribute irrational freebies from public funds.
— ANI (@ANI) January 25, 2022
राज्य के वित्तीय बजट से बड़ी होती है घोषणाएँ
उल्लेखनीय है, कि चुनाव का ऐलान होते ही राजनीतिक दलों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए सरकारी खजाने से अतार्किक मुफ्त ‘उपहारों’ के वादों की झड़ी लग जाती है। शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा गया है, कि चुनाव से पहले इस प्रकार के लुभावने वादे करना एक गंभीर विषय है, क्योंकि राजनितिक पार्टियों द्वारा मुफ्त में सुविधाओं की घोषणाओं की सूची इतनी बड़ी होती है, कि उसका बजट राज्य के राजस्व से भी अधिक हो जाता है।
पंजीकरण रद्द करने और चुनाव चिन्ह जब्त करने की मांग
शीर्ष न्यायालय में दायर जनहित याचिका में इस प्रकार के अतार्किक लुभावने वादे करने वाले राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द एवं उनके चुनाव चिन्ह को जब्त करने की अपील की गई है, जो मतदाताओं को मुफ्त में सुविधाएं देने की घोषणा करते है। आगामी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी कई राजनितिक पार्टियां आम मतदाताओं को बिजली और अन्य सुविधाएं मुफ्त में देने का वादा कर चुकी है। पिछले कुछ वर्षो से किसान की कर्जमाफी प्रत्येक चुनाव में एक बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है।
वादे बड़े – बड़े , राजस्व संग्रह न्यूनतम
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा गया है, कि एक अनुमान के अनुसार, यदि ‘आप’ पार्टी पंजाब में सरकार बनाती है, तो उसे मुफ्त सुविधाओं की योजना को लागू करने के लिए प्रति माह 12,000 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी। वहीं, शिरोमणि अकाली दल की घोषणाओं के मुताबिक प्रति माह 25,000 करोड़ रुपए और कांग्रेस के चुनावी वादे के अनुसार 30,000 करोड़ रुपए प्रति माह की जरूरत होगी, जबकि राज्य का कुल जीएसटी संग्रह महज 1400 करोड़ रुपए है।
शीर्ष न्यायलय में दायर जनहित याचिका में कहा गया है, कि वर्तमान में हकीकत यह है, कि उधार चुकता करने के बाद पंजाब सरकार वेतन और पेंशन के खर्च भी निकाल नहीं पा रही है, तो इस परिस्थिति में मुफ्त ‘उपहार’ कैसे दे पायेगी। वर्तमान स्थिति में पंजाब का कर्ज साल दर साल बढ़ता जा रहा है। पंजाब का बकाया कर्ज 77,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।
लोकलुभावन वादों पर लगे रोक
चालू वित्तीय वर्ष में सरकार के कोष में 30,000 करोड़ रुपए जमा हो पाए है। याचिकाकर्ता उपाध्याय ने कहा, कि वह वक्त दूर नहीं है, जब एक राजनीतिक पार्टी कहेगी, कि हम आपके घर में आपके लिए खाना पकाएंगे और दूसरी पार्टी कहेगी, कि ‘हम न केवल भोजन पकाएंगे, बल्कि आपको खिला भी देने। सभी राजनितिक पार्टियां लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की होड़ में है।
कैश और मुफ्त उपहार का वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों का चुनाव चिन्ह जब्त करने और उनकी मान्यता रद्द करने की मांग वाली जनहित याचिका पर आज सुनवाई है
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ करेगी सुनवाई pic.twitter.com/0HfpNQi3Cy
— Ashwini Upadhyay (@AshwiniUpadhyay) January 25, 2022