रामनगरी में श्रीराम जन्मभूमि के निर्माणाधीन मंदिर में स्थापित होने वाली दो भव्य शालिग्राम शिलाएं अयोध्या पहुंच गई है। भगवान विष्णु का स्वरूप मानी जाने वाली इन शिलाओं का अयोध्या में भव्य स्वागत सत्कार किया गया। एक अनुमान के अनुसार, कि ये शालिग्राम शिलाएं लगभग छह करोड़ साल पुरानी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों शिलाएं करीब 40 टन वजनी है। एक शिला का वजन 26 टन जबकि दूसरी शिला का वजन 14 टन बताया जा रहा है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग छह करोड़ साल पुरानी शालीग्राम शिलाओं का उपयोग रामनगरी में निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर में प्रभु श्रीराम के बाल्य स्वरूप की मूर्ति और माता सीता की मूर्ति बनाने के लिए किया जाएगा। उल्लेखनीय है, कि शालिग्राम शिला नेपाल की पवित्र गंडकी नदी के तट पर मिलती है। यह वैष्णवों द्वारा पूजी जाने वाली सबसे पवित्र शिला है, इसका उपयोग भगवान विष्णु को एक अमूर्त रूप में पूजा करने के लिए किया जाता है।
भगवान श्री राम के बाल स्वरूप की प्रतिमा बनाने के लिए नेपाल की बड़ी गंडक नदी से निकाली गई शालिग्राम शिलाखंड अयोध्या पहुंची।#Ayodhya #Shaligram @chitraaum pic.twitter.com/jeRrnKHCy0
— sanjay kumar (@sanjaysamir1) February 2, 2023
नेपाल की काली गंडकी नदी से लाई गई रामलला की प्रतिमा के लिए समर्पित ये दो विशाल शिलाखंड बीते बुधवार (1 फरवरी 2023) को ही नेपाल से रामसेवकपुरम पहुंचा दिए गए थे। गुरुवार (2 फरवरी 2023) को शालिग्राम शिलाओं को पूर्ण विधि विधान पूर्वक नेपाल स्थित प्राचीन मिथिला की राजधानी जनकपुर के जानकी मंदिर के महंत राम तपेश्वर दास और नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि द्वारा राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय को समर्पण पत्र के माध्यम से भेंट की।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री ने जानकारी दी, कि पहले वह जनकपुर से जुड़ी श्रीराम की विरासत के अनुरूप रामलला के लिए धनुष भेंट करना चाहते थे, किंतु राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के साथ दो वर्ष तक चले संवाद के बाद यह तय किया गया, कि नेपाल की गंडकी नदी से रामलला की मूर्ति के लिए पवित्र शिला भेंट की जाए और यह शिला समर्पित करते हुए हमें बेहद प्रसन्नता हो रही है।
राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय द्वारा शालिग्राम शिला समर्पित करने के लिए जनकपुर मंदिर, नेपाल सरकार और वहां के नागरिकों के प्रति आभार व्यक्त किया। बता दें, नेपाल की पवित्र काली गंडकी नदी से ये शिलाखंड निकाले गए है। विशाल शालिग्राम शिलाओं को अभिषेक और विधिवत पूजा-अर्चना के बाद 26 जनवरी को सड़क मार्ग द्वारा अयोध्या के लिए रवाना किया गया था।
बिहार के रास्ते यूपी के कुशीनगर और गोरखपुर होते हुए बुधवार को ये शिलाएं रामनगरी अयोध्या पहुंची थी। शिलायात्रा जिस-जिस स्थान से गुजरी उसका भव्य अभिनंदन और स्वागत किया। वैष्णवों के अनुसार, शालिग्राम ‘भगवान विष्णु का निवास स्थान’ माना जाता है और जो कोई भी इसे रखता है, उसे प्रतिदिन इसकी शुद्धता से विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की जो मूर्ति स्थापित की जाएगी, उसके लिए नेपाल की गंडकी नदी के 2 शालिग्राम पत्थर लाए जा रहे हैं. इन पत्थरों से ही मूर्ति तैयार की जाएगी. ये शिलाखंड 2 फरवरी को अयोध्या आएंगे. नेपाल से अयोध्या आने में 4 दिन का समय लगेगा। #Ayodhya #ayodhyarammandir pic.twitter.com/GUx8HfDn22
— Surabhi Tiwari🇮🇳 (@surabhi_tiwari_) January 29, 2023
शालिग्राम को रखने के लिए कठोर नियमों का भी पालन करना होता है, जैसे बिना स्नान किए शालिग्राम को ना छूना, शालिग्राम को कभी भी जमीन पर ना रखना, गैर-सात्विक भोजन से परहेज करना और बुरी प्रथाओं में लिप्त ना होना आवश्यक है। मंदिर अपने अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार के शालिग्राम का उपयोग कर सकते है। जिस स्थान पर शालिग्राम पत्थर पाया जाता है, वह स्वयं उस नाम से जाना जाता है और भारत के बाहर ‘वैष्णवों’ के लिए 108 पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है।