जम्मू में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्यों पर प्रशासन द्वारा की गयी सत्यापन की कार्यवाही से रोहिंग्या के शिविरों में हड़कंप मच गया। रोहिंग्याओ को भारत राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में उन्हें वापस उनके देश म्यांमार भेजने की मांग की गयी है।
भारत देश में बिना दस्तावेजों के रह रहे रोहिंग्या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा बनते जा रहे है। पूर्व में मिले कुछ राजनितिक दलों के समर्थन के चलते घुसपैठिये रोहिंग्या अपनी जड़े ज़माने के प्रयास में लग गए थे। परन्तु “देर आये दुरुस्त आये” कहावत को चरितथार्थ करते हुए भारतीय सरकार ने आखिरकार इन रोहिंग्या अवैध प्रवासियों पर ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए है, जिसका होना अतिआवशयक था।
म्यांमार देश के नागरिक रोहिंग्याओ ने जब वहां शांतिप्रिय ढंग से जीवन निर्वाह करने में यकीन करने वाले बौद्ध समुदाय के लोगो को परेशान करना प्रारम्भ कर दिया और उनकी पूजा पद्धति पर विघ्न डालने लगे। इसके फलस्वरूप बौद्ध संप्रदाय के लोगो को अपनी धर्म की रक्षा हेतु इन रोहिंग्याओ से लड़ना पड़ा और उन्होंने रोहिंग्याओ को म्यांमार की सीमा से बाहर खदेड़ दिया। म्यांमार की सीमा से खदेड़ जाने के बाद इन रोहिंग्या ने बंगलादेश में प्रवेश किया। इसके बाद अवैध रोहिंग्या बंगलादेश से भारत की सीमा में प्रवेश कर गए। कुछ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनितिक विचारधारा की पार्टियों द्वारा इन्हे भारत में इन्हे बसाने का प्रयास किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल से देश की सीमा में अवैध रूप से प्रवेश करने करने वाले रोहिंग्या एक गैर सरकारी संस्था की सहायता से जम्मू के क्षेत्र में रहने लगे। केंद्र सरकार द्वारा जम्मू के स्थानीय नागरिको को मूल निवास प्रमाणपत्र उपलब्ध करवाने की योजना में यह बात सामने आयी कि जम्मू में इस वक्त तक़रीबन बारह हजार रोहिंग्या निवास कर रहे है। जो देश की सुरक्षा के लिए कभी भी खतरा बन सकते है।
भारत में लगभग तीस से चालीस हजार रोहिंग्या अवैध रूप से रह रहे है। जिनमे से तक़रीबन तीस प्रतिशत जम्मू में निवास कर रह रहे है। जिन्हे एक खास मकसद के तहत जम्मू कश्मीर जैसे सवेदनशील क्षेत्र में कुछ स्थानीय राजनितिक संगठनो द्वारा बसाया जा रहा था। केंद्र सरकार द्वारा अवैध रोहिंग्याओ पर जारी कार्यवाही स्वागतयोग्य है, हालांकि माननीय न्यायलय की फटकार के बाद ही प्रशासन हरकत में आया है।