उत्तराखंड राजभवन से महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण विधेयक को मंजूरी मिल गई है। उल्लेखनीय है, कि यह विधेयक राजभवन में विचाराधीन था। राजभवन की अनुमति के साथ ही महिला अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का कानूनी अधिकार भी मिल गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक को राजभवन द्वारा मंजूरी मिलने के बाद अपने ट्विटर संदेश में लिखा,” हमारी सरकार द्वारा विधानसभा में पारित महिला आरक्षण बिल को मंजूरी देने पर माननीय राज्यपाल जी का हार्दिक आभार। यह कानून निश्चित तौर पर मातृशक्ति के सशक्तिकरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राज्य के विकास में अतुलनीय योगदान देने वाली नारी शक्ति के उत्थान हेतु हम प्रतिबद्ध हैं।”
हमारी सरकार द्वारा विधानसभा में पारित महिला आरक्षण बिल को मंजूरी देने पर माननीय राज्यपाल जी का हार्दिक आभार।
यह कानून निश्चित तौर पर मातृशक्ति के सशक्तिकरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राज्य के विकास में अतुलनीय योगदान देने वाली नारी शक्ति के उत्थान हेतु हम प्रतिबद्ध हैं।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) January 10, 2023
बता दें, बीते 30 नवंबर, 2022 को शीतकालीन विधानसभा सत्र के दौरान धामी सरकार द्वारा राज्य की महिलाओं को सरकारी सेवाओं में 30 फीसदी आरक्षण लागू करने के संबंध में विधेयक पारित किया था। गौरतलब है, कि हाईकोर्ट ने प्रदेश में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था जो शासनादेश द्वारा की गई थी, उसे निरस्त कर दिया था।
इसके बाद पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) विधेयक सदन में पेश किया गया था। इस विधेयक को विपक्षी दलों का भी समर्थन मिला और इस विधेयक को सदन में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।
उल्लेखनीय है, कि राज्य सरकार की नौकरियों में उत्तराखंड की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के लिए कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार ने 24 जुलाई 2006 को शासनादेश जारी किया था। इस आदेश को याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। जिस पर हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, प्रदेश सरकार के पास राज्य के निवास स्थान पर आधारित आरक्षण प्रदान करने की शक्ति नहीं है। भारत का संविधान केवल संसद को अधिवास के आधार पर आरक्षण देने की अनुमति देता है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, प्रदेश सरकार का वर्ष 2006 का शासनादेश संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 का उल्लंघन है।