उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला शनिवार 13 जुलाई को हो गया है। इन दोनों सीटों के चुनाव परिणाम सामने आ गए है, जिसमें कांग्रेस ने बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की है। बता दें, कि मंगलौर सीट पर भाजपा का कभी कोई विशेष प्रभाव नहीं रहा, लेकिन बदरीनाथ सीट पार्टी के लिए कई मायनों में खास थी। चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा को बदरीनाथ सीट से हाथ धोना पड़ा।
उल्लेखनीय है, कि मंगलौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। कांग्रेस उम्मीदवार काजी मोहम्मद निजामुद्दीन ने बीजेपी के करतार सिंह भड़ाना को सिर्फ 449 वोटों से हराया। जबकि बसपा प्रत्याशी उबैदुर्रहमान तीसरे स्थान पर रहे। हालांकि भाजपा यहां कुछ बूथों पर रिकाउंटिंग की मांग कर रही है। वहीं बदरीनाथ सीट पर कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने बीजेपी के राजेंद्र भंडारी को पांच हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया।
मंगलौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को जातीय समीकरणों का फायदा मिला। मंगलौर सीट एक ऐसी सीट है जो भाजपा कभी नहीं जीत पाई है। मंगलौर विधानसभा सीट हमेशा से ही बसपा का गढ़ रही है। राज्य गठन के बाद हुए पांच विधानसभा चुनाव में इस सीट पर चार बार बसपा ने जीत हासिल की, जबकि एक बार कांग्रेस को जीत मिली है। मंगलौर सीट पर पर जीत दर्ज करने वाले काजी मोहम्मद निजामुद्दीन ने बसपा के टिकट पर इस सीट से 2002 व 2007 का विधानसभा चुनाव जीता था।
राजेंद्र भंडारी बदरीनाथ सीट से कांग्रेस के विधायक थे और लोकसभा चुनावों से पहले विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिस कारण यह सीट खाली हुई थी। बताया जा रहा है, कि राजेंद्र भंडारी तो भाजपा में चले गए, लेकिन उनके समर्थक कांग्रेस में ही रह गए। इसके अलावा भंडारी के भाजपा में आने से बदरीनाथ के स्थानीय भाजपा नेता और कार्यकर्ता खुश नहीं थे। उन्होंने खुले तौर पर तो इसका विरोध नहीं किया, लेकिन चुनाव परिणाम नाराजगी का संकेत दे रहे है।
बता दें, मंगलौर से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक सरवत करीम अंसारी का पिछले साल अक्टूबर में निधन होने के कारण इस सीट पर उपचुनाव कराया गया था। वहीं, बद्रीनाथ में कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी के इस साल मार्च में इस्तीफा देने और बीजेपी में शामिल होने के बाद से यह सीट रिक्त चल रही थी।