उत्तराखंड की जलवायु जड़ी-बूटी उत्पादन के लिए आदर्श है। साथ ही प्रदेश में सगंध पौधों की खेती के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। दरअसल, राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में सबसे भीषण समस्या पलायन हो गयी है। ऐसे में यह अत्यंत जरुरी है, कि इन ग्रामीण इलाकों में ऐसे नवीन प्रयोग किये जायें, जो रोजगार के साथ ही स्थानीय निवासियों की आजीविका का साधन भी बन सके। विदेशों में उगने वाली रोजमेरी की खेती से न सिर्फ स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है, बल्कि राज्य की आर्थिकी को भी लाभ मिलने की उम्मीद है।
इसी क्रम में नेोग्याणा खासपट्टी क्षेत्र के युवा उघमी मितेश सेमवाल ने अंतरराष्ट्रीय एक्सपोर्ट कंपनी के साथ सुगंधित औषधीय पादप रोजमेरी का एक बड़ा अनुबंध कर एक अनूठी मिसाल पेश की है। बुधवार (19 जून 2024) को देहरादून स्थित आरआईएमटी संस्थान में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मितेश सेमवाल ने बताया, कि अथक प्रयासों और सीमैप शोध केंद्र के सहयोग से औषधीय गुणों से भरपूर रोजमेरी के पौधों की खेती के लिए उन्होंने गांव की बंजर पड़ी भूमि में अपने माता-पिता के साथ एक नया प्रयोग किया।
युवा उघमी मितेश सेमवाल ने पत्रकारों को बताया, कि वह वर्ष 2021 से गांव में अपने माता पिता की निगरानी में परंपरागत खेती के अलावा रोजमैरी का उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने बताया, कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में रोजमैरी की सूखी पत्तियों के दाम करीब 350 रुपये प्रतिकिलो है, जबकि रोजमैरी से प्राप्त होने वाले तेल का बाजार भाव लगभग 3500 से 4000 रुपये लीटर तक है। इसके साथ ही रोजमेरी का भोजन में इस्तेमाल करने से खाने का स्वाद तो बढ़ता ही है, साथ ही ये कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से भी बचाता है।
उन्होंने मीडियाकर्मियों को बताया, कि जल्द ही उनकी कंपनी ग्रामीण उद्यम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने जा रही है। उन्होंने जानकारी दी, कि उन्हें कनाडा की कंपनी हिमशक्ति से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजमेरी का एक बड़ा आर्डर प्राप्त हुआ है। मितेश सेमवाल ने बताया, कि हिमशक्ति फ्रांस व भारत के संयुक्त उपक्रम में बनी हुई कंपनी है।
पत्रकारवार्ता के दौरान हिमशक्ति कंपनी के फांउडर हर्षित ने जानकारी दी, कि हिमालय के गांव और जलवायु रोजमेरी व लैवेंडर की खेती के लिए वरदान हैं और औषधीय पादपों की डिमांड राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय बाजार में बहुतायत में है। इनमें प्रचुर मात्रा में औषधीय गुण पाये जाते हैं। उन्होंने बताया, बंदर और जंगली जानवर भी औषधीय एवं सगंधीय पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
गौरतलब है, कि रोजमेरी का इस्तेमाल ग्रीन टी में किया जाता है। इस चाय की देश-विदेश के फाइव स्टार होटलों में भारी डिमांड है। लीवर को स्वस्थ रखने के लिए रोजमेरी की चाय बेहद लाभदायक है। इसके नियमित उपयोग से पाचनतंत्र, त्वचा और शरीर में ऊर्जा बनी रहती है। साथ ही इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल, एंटीमाइक्रोबियल और सैलिसेलिक एसिड जैसे अन्य पोषक तत्व भी मौजूद रहते है, जो शरीर को कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाने में मदद करते है।