उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जनपद के सीमांत इलाके जौनसार बावर जनजातीय में एसटी – एससी के विशेष प्राविधानों के नियमो का उल्लंघन कर जमीनों की बंदरबाट का एक बड़ा मामला उजागर हुआ है। नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका बीते 16 जून को सूचीबद्ध हुआ थी।
उच्च न्यायलय में जनहित याचिका दायर होने के बाद राज्य सरकार से जबाब माँगा गया था। इसके बाद देहरादून (Dehradun) जिला प्रशासन द्वारा प्रारंभिक जांच पड़ताल के बाद लगभग 49 लीजधारकों को भू – कानून का दोषी मान कर इन्हें नोटिस भेज कर जबाब माँगा गया है। माननीय न्यायालय द्वारा मामले के संज्ञान के बाद लीजधारकों के बीच खलबली मच गयी है।
गौरतलब है, कि उत्तर प्रदेश के 1950 के भू -कानून के मुताबिक एससी – एसटी की जमीन को ना ही खरीदा जा सकता है,और ना ही इस भूमि को लीज पर दिया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने दायर याचिका में कहा, कि संविधान के अनुच्छेद -46 के अनुसार एससी -एसटी को विशेष दर्जा प्राप्त है। परन्तु चकराता क्षेत्र में उद्योगों को मनमर्जी के चलते भूमि लीज पर दी गयी है। इसके आलावा तीस वर्ष की लीज के बाद स्वतः रिन्यूवल का विवादित प्राविधान भी इसमें जोड़ा गया है।
याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी द्वारा कहा गया कि इस प्रकार के प्राविधान से भूमि अनंत काल तक जमीन लीजधारक के कब्जे में चली जाएगी। लीज से सम्बंधित यह शर्ते और नियम गैरकानूनी तरीके से जोड़ी गयी है। इसके अलावा भूमि लीज पर देने वाले परिवार के सदस्य इन शर्तो के चलते इसे कोर्ट में इसे भविष्य में चुनौती देने से भी वंचित रह जायेगा।
याचिकाकर्ता द्वारा कहा गया, कि मनमाने तरीके से लीज पर दी गयी भूमि से चकराता क्षेत्र के पर्यावरण एवं जैव विविधता पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा। याचिका में में कहा गया, कि राज्य की जमीनों की अंधाधुन खरीद फरोख्त को रोकने के लिए एक सख्त भू -कानून की आवश्यकता है।
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