गढ़वाल मंडल में सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध ‘जीतू बगड्वाल’ की प्रेम गाथा जो आज भी लोक संस्कृति में जीवंत है। पहाड़ के सैकड़ों गाँवों में जीतू बगडवाल नृत्य आज भी अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। उल्लेखनीय है, कि अब जीतू बगडवाल के जागर का नया फ्यूजन वर्जन सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हो रहा है। श्रद्धा कुहुप्रिया की आवाज और पांडवाज ग्रुप द्वारा लयबद्ध जीतू बगड्वाल के जागर के फ्यूजन ‘धुँयाल’ को यूट्यूब पर एक महीने तीन लाख से अधिक व्यूज मिल चुके है।
दंतकथाओ के अनुसार, गढ़वाल राज्य की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव निवासी पर जीतू का तांबे की खानों के साथ ही उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहन सोबनी को लेने के लिए उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। इसके साथ ही जीतू अपनी प्रेमिका भरणा जो उसकी बहन सोबनी की ननद थी, उससे मिलने के लिए भी व्याकुल था।
उल्लेखनीय है, कि एक दिन जीतू रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजा रहा था। बांसुरी की मधुर धुन पर आछरियां (परियां) उसके पास मंत्रमुग्ध होकर खिंची चली आई। आछरियां जीतू को अपने साथ ले जाना चाहती है, अर्थात उसके प्राण हरना चाहती थी। इस विपत्ति पर जीतू तनिक भी विचलित नहीं हुआ और उसने आछरियों को वचन दिया, कि वह शीघ्र ही उनके साथ चलेगा।
इसके बाद आखिरकार वह दिन भी आता है, जब अपने दिए हुए वचन का पालन करते हुए जीतू को आछरियों के साथ उनके लोक जाना पड़ा। दंतकथाओं के अनुसार, छह गते आषाढ़ की रोपणी के दिन आछरियां जीतू को लेने आ पहुंची, और उन्होंने जीतू का हरण कर लिया। जीतू अपने बैलों की जोड़ी के साथ धरती में समा गया। बताया जाता है, जीतू को आछरियों द्वारा हरण किये जाने के बाद भरणा ने भी सती हो गई थी।
जीतू के आछरियों के साथ जाने के बाद राजा ने उसके परिवार पर खूब अत्याचार किये। राजा ने उसके भाई शोभना की हत्या करवा दी और उसके परिजनों को जेल में बंद कर दिया। परिणामस्वरूप राजा प्रेतबाधा के चलते घोर संकटो से घिर गया। कहा जाता है, कि जीतू अदृश्य रूप से सदैव परिवार की सहायता करता रहा। इसके बाद तत्कालीन राजा को भी अपनी भूल का एहसास हुआ, और उसने जीतू को सम्पूर्ण गढ़वाल में देवता के रूप में पूजने के आदेश आदेश दिए। आज भी जीतू की याद में गढ़वाल के गाँवों में जीतू बगडवाल नाटिका का मंचन किया जाता है।