गढ़वाली संस्कृति के मूल में आध्यात्मिक भावना की प्रधानता है। गढ़वाल भूमि के स्थानीय निवासी सदैव लोक देवताओं के प्रति मन, कर्म, वचन से आस्थावान रहे है। उल्लेखनीय है, कि देवताओं की शक्तियो पर गढ़वाल के लोकवासियो को कभी भी संदेह उत्पन नहीं हुआ है, और ना कभी भविष्य में ऐसा होने की संभावना है।
देवभूमि में दैवीय चमत्कारो का प्रत्यक्ष अनुभव स्वयं होने के कारण गढ़वाली समाज सदैव देवताओं से भयभीत रहता है, और उसने अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में देवता का ही सहारा लिया है। जीवन में सुख-दुख जो भी आए वह सब देवता की ही कृपा से आए है। यह मनोभाव हमेशा यहाँ के निवासियो के लिये देवताओं के प्रति उसका दृढ़ विश्वास का प्रतीक रहा है। उसे देवताओं के विषय में कोई भ्रम नहीं है, और ना कोई शंका और ना ही उसके मन में कोई कुतर्क है।
उल्लेखनीय है, कि रहस्यात्मक गढ़वाल की भूमि प्राचीन काल से ही भूतों को भी देवता मानती आई है। इसकी पुष्टि अमरकोशकार जी ने यह कहकर की ….
“भूतों अपि देवयोमय”
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह देवता भूत कई प्रकार के होते है। मानव की इच्छाएं जब उनके जीवन काल में पूर्ण नहीं हो पाती है। तब वह मनुष्य मृत्यु के बाद भूत बनता है, तथा अपनी अपूर्ण इच्छा की पूर्ति के लिए दूसरे मनुष्यों पर लगकर उसे पूरा करने का प्रयास करता है। यह भूत पहले लोगों को भयभीत और परेशान करते है और फिर लोगों से पूजा भेंट आदि मांगते है।
गढ़वाल में कई प्रकार के भूतों का विवरण हैं जो निम्नलिखित है
- घस्या भूत : परिवार का जो सदस्य मरने के बाद भूत बनता है उसे घस्या भूत कहते है।
- छल्या भूत: छल करके डराने वाला भूत होता है।
- घन्या भूत : दूसरों का बुरा करने के लिए भेजी गई दुष्ट आत्मा को घन्या भूत कहते हैं।
- हन्त्या भूत : यह सबसे खतरनाक भूत है, जो हत्या करने वाला हत्यारा भूत है।
- प्रणय भूत : जीतू बगड्वाल, फ़ूयोंली, सरु कुमैण, जसी, मालू शाही
- रण भूत : युद्ध भूमि में मारे गए व्यक्ति को इस प्रकार का भूत कहा जाता है ये रण भूत निम्नलिखित है
“रणू रौत, तीलू रौतेली, सूरजु कौल, गढ़ु सुम्याल, मालू राजुला, रणु रौत, भानु भौपेला, कालू भंडारी”
- सैद या सयद भूत : ये भूत मुसलमान धर्म के होते है, इनकी वेशभूषा सफ़ेद होती है, सैद के विषय में तो कुछ रखवाली मन्त्र गीत भी मिलते है, जिनसे सैद से उत्पन होने वाले डर को दूर किया जाता है।
- घरिया भूत : यह भूत अकाल मृत्यु के कारण घर के सदस्यों को परेशान करता है। एक जवान युवती की अकाल मृत्यु होने पर वह अपने पति को भयभीत करती है। तब घडियाल्या लोग (भूत को नचाने वाला व्यक्ति) निम्न पंक्तियों को उच्चारित करता है:
“औ ध्यान जागी जा ध्यान जागी जा
गाड का बग्या कू ध्यान जागी जा
भेल का लमडया कू ध्यान जागी जा
सर्प का डस्यो कू ध्यान जागी जा
फ़ांस खैक मरया कू ध्यान जागी जा
(जिसका अर्थ है की हम भूत देवता का ध्यान करते है,वह नदी मे बहा, हो या पहाड़ से गिरा हो ,सर्प ने डसा हो ,या फांसी खाकर मारा हो )
इस प्रकार गढ़वाली समाज मे देवता भूतो के प्रति अनेक मान्यताएं है, तथा विभिन्न प्रतीकों के रूप मे समाज का जन जीवन युगो-युगो से चल रहा है, जिसका आधार विशुद्ध आध्यत्मिकता है।