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नैनीताल हाई कोर्ट
उत्तराखंड स्वतंत्रता के बाद समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। उत्तराखंड सरकार ने 27 जनवरी को यूसीसी लागू कर दिया है। इस कानून के तहत लिव इन के लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य हो गया है। मंगलवार को हाई कोर्ट ने लिव-इन-रिलेशनशिप से संबंधित प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की।
नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, राज्य सरकार ने यह नहीं कहा है, कि आप साथ नहीं रहते हैं। जब आप बिना शादी के ही निर्लज्जता से साथ रह रहे हैं, तो रहस्य क्या है?
The court clarified that the state government was not prohibiting live-in relationships but merely requiring their registration, which did not amount to a public declaration. It also rejected general claims of privacy violations, stating that allegations must be specific.
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— GPlus (@guwahatiplus) February 18, 2025
इससे किस निजता का हनन हो रहा है? राज्य सरकार लिव-इन संबंधों पर रोक नहीं लगा रही है, बल्कि पंजीकरण की शर्त लगा रही है। हाई कोर्ट ने आगे कहा, “बीच में कौन आ रहा है? आपको यह समझने की जरूरत है, कि आप आरोप लगा रहे हैं, कि वे आपकी निजता का उल्लंघन कर रहे हैं, आपके विवरण का खुलासा कर रहे है। यदि ऐसी कोई सामग्री है, तो कृपया उसका खुलासा करे। कोई सर्वव्यापक प्रस्तुतियां नहीं। यदि आप आरोप लगाते हैं, तो स्पेसिफिक रहें।”
इसके बाद कोर्ट द्वारा इस याचिका को पहले दायर की गई इसी प्रकार की याचिका के साथ जोड़ा गया, जिसमें हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। इस मामले पर अगली सुनवाई 1 अप्रैल को होगी। बता दें, कि राज्य सरकार द्वारा पारित यूसीसी के प्रावधान में शामिल लिव-इन-रिलेशनशिप को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने सुप्रीम कोर्ट के 2017 में पारित निर्णय का हवाला देते कोर्ट में दलील दी, कि लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन उनके मुवक्किल की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता का उल्लंघन है।
वकील ने कहा, कि 23 साल का होने के नाते याचिकाकर्ता अपने लिव-इन रिलेशनशिप को बताना नहीं चाहता है, यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। क्योंकि वह अपने साथी के साथ अपने लिव-इन रिलेशनशिप की घोषणा या पंजीकरण नहीं करना चाहता है।
याचिकाकर्ता के वकील के तर्क का खंडन करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने कहा, कि यूसीसी किसी भी घोषणा का प्रविधान नहीं करती है। यह केवल नागरिकों से ऐसे रिश्ते के लिए पंजीकरण करने के लिए कह रही है।