लगभग तीन दशक बाद उत्तराखंड से दिल्ली कूच कर रहे आंदोलनकारियों में शामिल महिलाओं से रामपुर तिराहा में सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और साजिश रचने के मामले में अदालत ने दोषी पीएसी के सेवानिवृत सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही दोषियों पर 50-50 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया है।
सोमवार 18 मार्च 2024 को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश शक्ति सिंह ने सुनवाई के रामपुर तिराहा कांड की तुलना जलियावाला बाग जैसी घटना से की। कोर्ट ने कहा, कि पुलिस ने कई मामलों में वीरता का परिचय दिया प्रदेश का मान-सम्मान बढ़ाया, लेकिन यह देश और न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाला प्रकरण है।
#BigBreaking:रामपुर तिराहा कांड में 30 साल बाद आया फैसला
दो आरोपियों को उम्रकैद की सजा
50 -50 हजार का लगाया जुर्माना #Rampur pic.twitter.com/rCtBwVrKvt— News18 Uttar Pradesh (@News18UP) March 18, 2024
न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, कि अपराध करने वाले कोई साधारण शख्स नहीं थे, बल्कि उनके कंधों पर आमजन की सुरक्षा का दायित्व था। ऐसा व्यक्ति यदि स्वयं दुष्कर्म जैसी घटना में शामिल होता है, तो यह पूरी व्यवस्था के लिए अत्यंत पीड़ादायक है। कोर्ट ने कहा, कि दोषी सिपाहियों का यह कृत्य सम्पूर्ण जनमानस व इस न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाला है और आजादी से पहले हुए जलियांवाला बाग की घटना को याद दिलाती है।
शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परविंदर सिंह और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया, कि मिलाप सिंह की पत्रावली में प्रकरण में फैसले के प्रश्न पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और षड्यंत्र रचने के मामले में अभियुक्त पीएसी के सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप पर दोष सिद्ध किया। इस मामले 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए थे।
गौरतलब है, कि तीन दशक बीत जाने के बाद ये मामला कोर्ट में किसी नतीजे पर पहुंचा है। इसमें आरोपी पीएसी के सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र सिंह को सजा सुनाई गई। अधिवक्ता अनुराग वर्मा के मुताबिक, इस घटना के दोषी झम्मन सिंह, महेश शर्मा, नेपाल सिंह आदि की मौत हो चुकी है। जबकि दोनो जिंदा आरोपी पीएसी से रिटायर हो चुके हैं। इस घटना के एक दोषी सब इंस्पेक्टर विक्रम सिंह तोमर फरार है, जिसे भगोड़ा घोषित किया जा चुका है।