पृथक राज्य उत्तराखंड गठन के लिए हुए आंदोलन के दौरान एक आंदोलनकारी महिला से दुष्कर्म के मामले आखिरकार फैसले का वक्त आ गया है। बीते तीन दशको से जारी कानूनी लड़ाई के बाद इंसाफ मिलने की उम्मीद जगी है। अदालत ने फैसले के लिए 15 मार्च की तिथि तय कर दी है। इससे पूर्व कोर्ट ने अभियोजन और बचाव पक्ष को मामले में अपनी ओर से साक्ष्य तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की कापी, एक अन्य दस्तावेज व दलील पेश करने के लिए शुक्रवार का समय दिया था।
उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया, कि शुक्रवार को मिलाप सिंह पत्रावली में सुनवाई पूरी हो गई। आरोपी गाजियाबाद पीएसी में तैनात थे। आंदोलनकारियों को रोकने के लिए उनकी ड्यूटी रामपुर तिराहा पर लगाई गई थी। वहीं सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा ने बताया, कि 2 अक्टूबर 1994 की घटना के बाद थाना छपार में 1500 आंदोलनकारियों के विरुद्ध संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था।
इसके बाद उत्तराखंड संघर्ष समिति ने 7 अक्टूबर को हाईकोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दी थी। हाई कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए सीबीआई को मामले की प्राथमिक जांच के आदेश दिए थे। उन्होंने बताया, कि सीबीआई ने शुरुआती जांच के बाद बंद लिफाफे में हाई कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी थी। जिसके उपरांत सीबीआई को विस्तृत विवेचना का आदेश दिया गया था।
सीबीआई की विवेचना के दौरान उत्तराखंड की आंदोलनकारी महिलाओं से दुष्कर्म और आंदोलनकारियों पर फर्जी हथियार बरामदगी के मामले सामने आए थे। इस पर सीबीआई ने कोर्ट में अलग-अलग चार्जशीट दाखिल की थी। सीबीआई ने विवेचना पूरी कर एक आंदोलनकारी महिला से दुष्कर्म के मामले में पीएसी 41वीं वाहिनी के जवान मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप के विरुद्ध कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी।
इसके बाद मामला पूरे 29 वर्षो तक कोर्ट में लटका रहा। वर्ष 2023 में उत्तराखंड संघर्ष समिति की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने एडीजे शक्ति सिंह को त्वरित स्थानांतरण के आदेश दिए थे। इसके उपरांत 10 माह में 15 लोगों की गवाही कर मामले की सुनवाई पूरी की गई। सीबीआई की विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा ने बताया, कि शुक्रवार को मामले में सुनवाई पूरी करते हुए एडीजेए शक्ति सिंह ने सरकार बनाम मिलन सिंह मामले में निर्णय के लिए 15 मार्च की तिथि निर्धारित की है।
जानकारी के लिए बता दें, तीन दशक पहले उत्तराखंड राज्य गठन की मांग को लेकर सैंकड़ो बसों में सवार होकर हजारों आंदोलनकारी महिला और पुरुषों ने देहरादून से दिल्ली के लिए कूच किया था। एक अक्तूबर 1994 की रात में रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया। आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिसकर्मियों ने अंधाधुन फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। जबकि कई आंदोलनकारी महिलाओंं से दुष्कर्म हुआ था।