रासी-महापंथ-केदारनाथ ट्रैकिंग रूट से 25 दिनों बाद मृतक ट्रैकर के शव को जिला आपदा प्रबंधन विभाग ने वायुसेना की सहायता से निकाल लिया है। शव केदारनाथ से छह किमी दूर ट्रैक पर टेंट के अंदर रखा हुआ था। बता दें, अक्टूबर माह के पहले हफ्ते में केदारनाथ-रांसी ट्रैक पर गए बंगाल के 10 सदस्यीय दल में से 02 सदस्यों अत्यधिक स्वास्थ्य खराब होने पर वे लोग ट्रैक पर ही फंस गए थे,जबकि अन्य 8 ट्रैकर पोर्टरों सहित वापिस लौट आये थे।
ट्रैकिंग रूट पर फंसे दोनों ट्रैकर्स को सुरक्षित लाने हेतु एसडीआरएफ (SDRF) और उत्तराखंड पुलिस की टीम ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को जोखिम में डालकर भारी बर्फबारी के बीच 12 किमी दूर महापंथ कॉल के पास बर्फीली चट्टानों के बीच ट्रैकर्स को खोज निकाला। दोनों ट्रैकर्स में से एक का स्वास्थ्य अत्यधिक खराब था, जबकि दूसरे की मृत्यु हो गयी थी। मृतक ट्रैकर की पहचान आलोक विश्वास पुत्र बाबुल विश्वास, 34 वर्ष, सगुन नदिया, पश्चिम बंगाल के रूप में हुई है।
Uttarakhand | The body of a trekker who died on the Kedarnath-Ransi trek in early October was recovered by SDRF and transported by helicopter to Guptkashi from Mahapanth Col today
(Source: SDRF) pic.twitter.com/ZzlFW6LoQW
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) November 2, 2022
बता दें, इस इलाके में लगातार बर्फबारी का दौर जारी था। वहीं जिस स्थान पर शव था, वह रास्ता भी बेहद जोखिम भरा था। हैलीकॉप्टर द्वारा ही शव को लाया जाना संभव था। हैलीकॉप्टर की अनुमति के लिए जिला आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा वायुसेना से संपर्क किया जा रहा था, लेकिन हैलीकॉप्टर उपलब्ध न होने के कारण शव वहीं ट्रैक पर ही पड़ा रहा।
उक्त घटना के मद्देनजर 29 अक्टूबर को मणिकांत मिश्रा, कमांडेंट SDRF के निर्देशानुसार पोस्ट सहस्त्रधारा से हाई एल्टीट्यूड रेस्क्यू एक्सपर्ट टीम को हेलीकाप्टर के माध्यम से ट्रैकर के शव को निकालने के लिए रवाना किया गया था।
उल्लेखनीय है, कि बंगाल का एक ट्रैकिंग दल रांसी से होते हुए महापंथ-केदारनाथ के लिए बीते 2 अक्टूबर को रवाना हुआ था। इसमें ट्रैकिंग दल में कुल 10 सदस्य शामिल थे। 8 सदस्यों तो सुरक्षित केदारनाथ धाम पहुंच गए, जबकि दो सदस्य केदारनाथ से लगभग 6 किलोमीटर दूरी पर फंसे गए थे। इसमें एक ट्रैकर की मौत हो गई थी।
वहीं बीते तीन वर्षों में चोपता में ढाई लाख से अधिक पर्यटक पहुंचे है, लेकिन प्रशासन के पास ट्रैकरों की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। ट्रैकरों व गाइडों का कहीं पंजीकरण नहीं हो रहा है, जिससे न तो इनके आने का पता चल पता है और ना ही वे किस रूट पर गए है, इसकी जानकारी कहीं दर्ज होती है।
अधिकतर ट्रैकरों के पास अनुमति के नाम पर मात्र वन विभाग का पत्र होता है, लेकिन वे किस रूट पर ट्रैकिंग पर जा रहे है, इसकी जानकारी नहीं होती है। आपातकालीन स्थिति में ही पुलिस विभाग व आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम को सूचना मिलती है।