1 अक्टूबर 1994 की रात को रामपुर तिराहा में पृथक राज्य की मांग को लेकर दिल्ली कूच कर रहे आंदोलनकारियों में शामिल महिलाओं के साथ जो बर्बरता हुई उसे आज तक उत्तराखंड के लोग भुला नहीं पाए है। उस रात निहत्थे आंदोलनकारियों के शरीर गोली से छलनी हुए, और मातृशक्ति के स्वाभिमान को सड़क पर छलनी किया गया। गौरतलब है, कि उस वक्त यह राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा भी बना, लेकिन तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के असहयोगात्मक रवैये के चलते आंदोलनकारी तीन दशकों से न्याय के लिए भटक रहे है।
18 मार्च 2024 को रामपुर तिराहा कांड के एक मुकदमे में आंदोलनकारी महिला से सामूहिक दुष्कर्म, लूट और शील भंग के दोषी पीएसी से सेवानिवृत दो सिपाहियों को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश शक्ति सिंह की कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही दोनों पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। न्यायालय के निर्णय से दर्शकों से इन्साफ के लिए संघर्षरत आंदोलनकारियों में उम्मीद की किरण जगी है।
बता दें, लगभग तीस साल पहले एक और दो अक्टूबर के बीच की रात उत्तराखंड राज्य गठन की मांग को लेकर महिला एवं पुरुष आंदोलनकारी बस समेत अन्य वाहनों से शांतिपूर्वक तरीके से दिल्ली जा रहे थे, लेकिन उनका रास्ता रोकने के लिए तत्कालीन मुलायम सरकार किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थी। पुलिस प्रशासन को तत्कालीन यूपी सरकार से स्पष्ट आदेश के कारण रामपुर तिराहा पर आंदोलनकारी को रोक दिया गया।
रास्ता रोके जाने पर आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई और पुलिस ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर अंधाधुन फायरिंग शुरू कर दी। इसके कारण सात आंदोलनकारी शहीद हो गए और कई महिलाओं के साथ दरिंदगी की गई। रामपुर तिराहा कांड में दोषियों को सजा सुनाए जाने के दौरान अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश शक्ति सिंह ने बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा, कि यह घटना जलियांवाला बाग कांड की याद दिलाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती वाले दिन यह घटना पूरी तरह मानवीय मर्यादाओं को तार-तार करने वाली है।
एडीजे शक्ति सिंह ने सजा पर सुनवाई के दौरान बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, कि शांतिपूर्ण आंदोलन में नियमों के अधीन रहते हुए भाग लेना किसी भी देशवासी का मौलिक अधिकार है। उत्तराखंड की महिलाएं और पुरुष भी शांतिपूर्वक आंदोलन के लिए दिल्ली जा रहे थे। उन पर गोलियां चलाना और सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटना को पुलिसकर्मियों द्वारा अंजाम देना अत्यंत पीड़ादायक है, क्योंकि पुलिस और पीएसी के कंधे पर ही आमजन की सुरक्षा होती है। आदेश में कहा गया, कि आंदोलन में भाग लेने जा रही महिला के साथ दुष्कर्म छेड़छाड़ व लूट जैसा जघन्य अपराध पूरी मानवता को शर्मसार करने वाला है।
वहीं रामपुर तिराहा कांड में दोषी पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने पर आंदोलनकारियों ने संतोष व्यक्त किया है। उनका कहना है, कि लंबे समय से न्याय का इंतजार कर रहे पीड़ितों और उनके स्वजन को अदालत के निर्णय से बड़ी राहत मिली है। वहीं अन्य लंबित मामलों को लेकर भी उम्मीद जगी है। बता दें, अभी भी मुजफ्फरनगर अदालत के साथ ही नैनीताल हाई कोर्ट में भी मुकदमे विचाराधीन है।
रामपुर तिराहा कांड मामले में शुरुआत से लेकर अब तक इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे नैनीताल हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रमन शाह के अनुसार, आंदोलनकारियों पर की गई बर्बरता के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 70 मुकदमे दर्ज किए थे। जिसमें चार्जशीट लगा दी गई है। इसमें 22 हत्या 7 सामूहिक दुष्कर्म तथा 17 छेड़खानी के मामले है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में अनंत कुमार सिंह सहित तीन ने केस ट्रांसफर की अर्जी लगाई थी।
वहीं सीबीआई ने तत्कालीन थाना प्रभारी निरीक्षक रहे राजवीर सिंह के विरुद्ध दो मुकदमे दर्ज किए थे। जिनमें एक मुकदमे में उन पर जीडी फाड़कर झूठ साक्ष्य गढ़ने तथा दूसरे मुकदमे में उन पर आपराधिक साजिश रचने का आरोप था।