शनिवार (16 अप्रैल 2022) के दिन सम्पूर्ण राष्ट्र में हनुमान जी के जन्मोत्सव पर भव्य कार्यक्रमों के आयोजन की तैयारियां चल रही है। इस पावन अवसर पर देवभूमि उत्तराखंड में स्थित हनुमान मंदिरों में पूजा की विशेष तैयारियां की गई है, लेकिन यह जानकारी सुनकर आप हैरान होंगे, कि उत्तराखंड में एक गांव ऐसा भी है, जहां के निवासी हनुमान जी से रुष्ट है, और गांव में हनुमान जी की पूजा भी नहीं करते है। इस गांव में बजरंगबली की पूजा करना वर्जित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में जब मेघनाद के वार से लक्ष्मण मूर्छित अवस्था में चले गए थे, तो लक्ष्मण जी को होश में लाने के लिए सुषेण नामक वैद्य ने हनुमान जी को हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था। संजीवनी बूटी को प्राप्त करने के लिए हनुमान जी बूटी लेने चमोली जनपद स्थित द्रोणगिरी पर्वत पहुंचे। इसी पर्वत की तलहटी में द्रोणगिरी गांव बसा हुआ है।
मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी जब बूटी लेने आए, तो गांव की एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें पर्वत का वह भाग दिखाया, जिस स्थान पर औषधि उगती थी। इसके बाद भी जब उन्हें यह समझ में नहीं आया, कि संजीवनी बूटी कौन सी है, तब भगवान हनुमान जी अपने साथ पर्वत का एक हिस्सा ही उखाड़ कर ले गए। गांव के निवासियों के अनुसार, हनुमान जी उस समय उनके द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा उखाड़ कर ले गए थे, और इसी बात से नाराज होकर गांव के निवासी हनुमान जी की पूजा नहीं करते है।
द्रोणागिरी के निवासी द्रोणागिरी पर्वत की पूजा बाएं हाथ से करते है, क्योंकि पवनपुत्र हनुमान जी दाएं हाथ से पर्वत उठा कर ले गए थे। यहां द्रोणागिरी पर्वत को ही देवतुल्य माना जाता है। द्रोणागिरी पर्वत पर पर्वतारोहण प्रतिबंधित है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिसने भी यह प्रयास किया, वे लोग काल का निवाला बन जाते है। ऐसा कहा जाता है, कि श्रीलंका के सुदूर क्षेत्र में मौजूद ‘श्रीपद’ नामक स्थान पर स्थित पर्वत ही द्रोणागिरी का वह हिस्सा है, जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे। इस स्थान को ‘एडम्स पीक’ के नाम से भी जाना जाता है, जबकि श्रीलंका के स्थानीय लोग इस पर्वत को रहुमाशाला कांडा पुकारते है।
इस गांव में भगवान राम की पूजा बड़े धूमधाम से होती है। यहां के लोग हर वर्ष द्रोणगिरी की पूजा करते है, लेकिन इस पूजा में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि एक महिला ने ही द्रोणगिरी पर्वत का वह हिस्सा दिखाया था, जहां संजीवनी बूटी उगती थी। यहां तक की इस गांव में लाल रंग का ध्वज लगाने पर भी प्रतिबंध है। जोशीमठ से मलारी की तरफ लगभग 50 किलोमीटर आगे बढ़ने पर जुम्मा नामक स्थान से द्रोणागिरी गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है। द्रोणागिरी गांव से ऊपर बागिनी, ऋषि पर्वत और नंदी कुंड जैसे कुछ दिव्य स्थान मौजूद है।